Wednesday, 17 May 2023

सरकारी कर्मियों को नई पेंशन स्कीम [NPS], सांसद और विधायक को पुरानी पेंशन[OPS] और चुनावी वादे : तथ्य और तर्क OLD AND NEW PENSION

 

सरकारी कर्मियों को नई पेंशन स्कीम, सांसद और विधायक को पुरानी पेंशन और चुनावी वादे : तथ्य और तर्क

                                                                 

I. परिदृश्य 

सरकारी कर्मचारियों को पेंशन देने या पुनः ओल्ड पेंशन स्कीम को आरम्भ करने को लेकर चर्चा चल रही है. सरकारी कर्मचारी ओल्ड पेंशन स्कीम को लेकर अपना अनुराग और उसपर भारत सरकार के उपेक्षापूर्ण बर्ताव को लेकर अपना आक्रोश अनेक बार व्यक्त कर चुके हैं. विपक्ष के राजनीतिक दलों ने चुनावी घोषणा पत्र में ओल्ड पेंशन स्कीम को आरम्भ करने का वादा किया. ऐसा कहा जा रहा है कि झारखण्ड में २०१९, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में २०२२ और कर्नाटक में २०२३ का चुनाव बीजेपी हार गई जिसमें ओल्ड पेंशन स्कीम की बड़ी भूमिका थी. विपक्ष ने इसमें वादा किया था कि पुरानी पेंशन योजना लायेंगे और शायद इसी कारण विपक्ष जीत गया. ध्यान रहे कि ऐसा ही पुरानी पेंशन वापस लाने का वादा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी  ने भी उत्तर प्रदेश के चुनाव में 2022 में किया था लेकिन बुरी तरह हारे थे. After SP, BSP promises restoration of old pension scheme for govt employees in UP--

https://www.thehindu.com/elections/uttar-pradesh-assembly/after-sp-bsp-promises-restoration-of-old-pension-scheme-for-govt-employees-in-up/article38419469.ece https://indianexpress.com/article/explained/up-polls-pension-scheme-sp-akhilesh-yadav-yogi-adityanath-explained-7764824/

   ज्यों ज्यों २०२४ के लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं ओल्ड पेंशन स्कीम के बारे में चर्चा बढ़ रही है. २०२३ के मई के आंकड़ों के अनुसार केवल उत्तर प्रदेश में ही 16.35 लाख सरकारी कर्मचारी हैं, 11 लाख पेंशनर्स हैं. https://economictimes.indiatimes.com/wealth/personal-finance-news/up-govt-hikes-da-by-4-how-much-salary-will-increase-after-dearness-allowance-is-hiked/articleshow/100299642.cms इनमें से अनेक २००५ के बाद नियुक्त हुए होंगे तो उन्हें नई पेंशन मिल रही होगी. फिरभी लगभग २७ लाख व्यक्ति पेंशन से प्रभावित हैं या हो सकते हैं. इसके साथ ही युवाओं की भरी तादाद है जो सरकारे नौकरी में आना चाहते हैं. अभी १७ १८ फरवरी २०२४ को उत्तर प्रदेश में पुलिस कांस्टेबल की परीक्षा में लगभग ५० लाख युवाओं ने आवेदन किया था. इस प्रकार लगभग १-२ करोड़ वोट ऐसे हैं (यदि इन सभी के परिवार के वोटर को शामिल कर लें) जो पेंशन से प्रभावित हैं और एक बड़ा वोट बैंक हैं. यह केवल उत्तर प्रदेश की बात है. केंद्र सरकार ने ७ मार्च २०२४ को केन्द्रीय कर्मियों का डी ए या महंगाई भत्ता ४% बढ़ा दिया है. वर्तमान में यह मूल वेतन (बेसिक पे) या मूल पेंशन का ४६% है. केंद्र सरकार को १२८६८.१२ करोड़ हर वर्ष का खर्च आएगा. इससे ४९.१८ केंद्र सरकार के कर्मियों और ६७.९५ लाख पेंशन वालों को लाभ होगा. इससे ही समझा जा सकता है कि यदि सबको पेंशन की स्कीम की जाये तो १ करोड़ १८ लाख लोगों को पेंशन देनी होगी. क्या देश इतना बड़ा भार लेने के लिए तैयार है? बुनियादी शिक्षा और स्वास्थ्य, गरीबों को अन्न आदि के लिए कैसे होगा?


II. कार्यपालिका और अन्य सरकारी कर्मचारी

सरकारी क्षेत्र के कर्चारियों में से कुछ लोंगों ने बड़ी तन्मयता और लगन से अपनी सेवा को अंजाम दिया है और दे रहे हैं. अनेक सरकारी उपक्रमों विशेषकर डाक विभाग, बैंक आदि ने  ग्रामीण क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किया है जो निजी क्षेत्र नहीं कर पाए हैं.  लेकिन यह एक कठोर सच्चाई भी है कि अनेक सरकारी कर्मचारियों ने अपने काम करने के तरीकों से अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मारी है. प्रोडक्टिविटी, गुणवत्ता और समय पर काम करने की संस्कृति का व्यापक अभाव है जिससे हममें से सभी लोग परिचित हैं और भुक्त भोगी भी. [हमारे बच्चे सरकारी स्कूल में नहीं प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं.]  मैं बीएसएनएल का उपभोक्ता था, उसके फोन और ब्रॉड बैंड का उपयोग करता था, २००४ से २०१८ तक इसका उपयोग किया. अनेक बार बहुत दिक्कत हुई और लगातार परेशान रहने के बाद, कई बार अधिकारियों को मेल लिखने के बाद भी अंततः हार कर निजी क्षेत्र का कनेक्शन लिया जो अनेक दृष्टि से बेहतर कार्य कर रहा है, मेरे अनेक जानकार बीएसएनएल छोड़कर निजी कनेक्शन लिए हैं. कर्मचारी या अधिकारी जवाब नहीं देते जब तक कोई ट्वीट पीएमओ को टैग नहीं लिया जाए. 

   मेरे अनेक मित्र सरकारी क्षेत्र में क़ानून के अध्यापक हैं, आजकल उनकी सेलरी २ लाख के आस पास है, २००४ के पहले के नियुक्त हैं सो पेंशन भी मिलेगी. लगभग लाख रूपये या ज्यादा. वे पढने लिखने में उच्च कोटि के रहे हैं, लेकिन उनमे से कई पढने पढ़ाने के काम में कम रूचि लेते हैं. पढने पढ़ने का माहौल भी नहीं है.  कुछ तो LLB की क्लास लेने को भी अवॉयड करते हैं. मैंने उनमें  से बहुत कम को देखा कि वे किसी गंभीर शोध कार्य में लगे हैं, जबकि सेलरी अध्यापन, शोध और प्रशासनिक कार्य के लिए मिलती है, साल में एक इन्क्रीमेंट है, दो बार DA लगता है, प्रशासनिक कार्य में ज्यादा रूचि लेते हैं, सरकारी कर्मचारी कालीदास हैं, जिस डाली पर बैठते हैं... आज अगर नई पीढी को पेंशन नहीं मिल रही है तो उसके लिये कुछ सीमा तक उनका रवैया भी जिम्मेदार है. दूसरी बात है कि सरकार के लोक हितकारी कार्य बढे हैं, प्राथमिक शिक्षा २००९ के बाद से मुफ्त हुई है, गरीबों और जरुरतमंदों के लिए नई योजनाये चली हैं, कमजोर वर्गों के लिए स्वास्थ्य स्कीम चल रही है, किसानों के कर्ज माफ़ हो रहे हैं, आदि मैं AC कोच में यात्रा करता हूँ उसमे भी सब्सिडी है.

III. विधायिका में पेंशन

तीसरी बात है सांसदों विधायकों को पेंशन, इसको समझने के लिए  दो भागों में बांटते हैं--

क) पहला है उनके कार्य की प्रकृति-- विधायकों और सांसदों को सॉफ्ट टारगेट बनाया जाता है. जो राजनीति में रहते हैं उन्हें पता है कि राजनीति कितनी टेढ़ी खीर है, हम आप देख ही रहे हैं कि कैसे रेजिडेंशियल सोसाइटी, सामाजिक संगठनों, धार्मिक और जातीय संस्थाओं के चुनाव में कितनी दिक्कत आती है.  और उसे आगे चलाना स्वयं कितना कठिन हो गया है, ऐसे में हमारे जनप्रतिनिधियों को पेंशन देने पर प्रश्न करना उचित नहीं लगता. यह देना जरूरी है ताकि उनके जीवनयापन का संकट नहीं आये. जो धनी और सक्षम सांसद या विधायक हैं, उन्हें खुद ही यह पेंशन छोड़ देनी चाहिए. 

ख) दूसरा है, उनकी संख्या और उनपर खर्च-- १७ मार्च-२०२३,  की आज तक की रिपोर्ट के अनुसार लगभग ४७९६ पूर्व सांसदों को पेंशन मिल रही है, जिसपर ७० करोड़ खर्च हो रहे हैं. https://www.aajtak.in/india/news/story/expenditure-on-pension-of-former-member-of-parliament-congress-mp-balu-dhanorkar-letter-fm-nirmala-sitharaman-ex-mps-pension-ntc-1656087-2023-03-17  अब तुलना करिये २०२३ में केंद्रीय कर्मियों के ऊपर 1,53,415 crore पेंशन पर खर्च का अनुमान है. इस प्रकार की तुलना वैसे ही है जैसे सेव और नारंगी की तुलना. https://www.thehindu.com/business/budget/defence-budget-up-by-13-from-last-year-hike-in-allocation-for-pension/article66458473.ece#:~:text=The%20revised%20estimates%20of%202022,was%20pending%20since%20July%202019.


विधिक प्रावधान --

भारत के संविधान के अनुच्छेद १०६ और १९५ के अनुसार संसद और राज्य विधान मंडल अपने प्रतिनिधियों के वेतन भत्ते के लिए क़ानून बन सकते हैं. संघ सूची में एंट्री ७३ और राज्य सूची में एंट्री ३८ इस बारे में प्रावधान करते हैं. इसी के अनुसरण में संसद् सदस्‍य वेतन, भत्ता और पेंशनअधिनियम, 1954 (The Salary, Allowances and Pension of Members of Parliament Act, 1954https://www.indiacode.nic.in/bitstream/123456789/1438/1/A1954_30.pdf पारित किया गया जिसे कई बार संशोधित किया गया. आखिरी बार संशोधन २०२३ में किया गया. पेंशन संबंधी प्रावधान धारा 8A. Pension. 8AB. Rounding off period of pension. 8AC. Family pension में है. यह इस प्रकार है--

8A. Pension.―(1) With effect from the 18th day of May, 2009, there shall be paid a pension of [twenty five thousand rupees] per mensem to every person who has served for any period as a Member of the Provisional Parliament or either House of Parliament: Provided that where a person has served as a Member of the Provisional Parliament or either House of Parliament for a period exceeding five years, there shall be paid to him an additional pension of [two thousand rupees ] per mensem for every year served in excess of five years.

पेंशन की राशी २५००० प्रति माह है. इसमें सरकारी नियमों  के अनुसार कई चीजें जुड़ जाती हैं. इसलिए यह कहना कि सांसदों को भारी पेंशन मिलती है यह एक भरी अफवाह है. 


IV. न्यायपालिका में पेंशन


भारत में न्यायपालिका तीन स्तरों पर बंटी है. सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय है जो दिल्ली में है. इसमें कुल ३४ न्यायाधीश हैं. इसके बाद उच्च न्यायालय है जो २५ राज्यों में है. [कुल राज्य २८ और केंद्र शाशित प्रदेश ८ हैं] जिसमें २०२२ के आंकड़ों के अनुसार ११०४ न्यायाधीशों के पद हैं. https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1814540. जिला न्यायालय के स्तर पर २३७९० पद हैं.

उच्च और उच्चतम न्यायालय के [११०४+३४ =]११३८ जज पुरानी पेंशन स्कीम में आते हैं. लेकिन २००४ के बाद नियुक्त जिला स्तर के सभी जज नई पेंशन स्कीम में आते हैं. इस सम्बन्ध में एक मामला भी न्यायालय में विचाराधीन है कि उन्हें भी पुरानी पेंशन दी जाये जो २००४ के बाद नियुक्त हुए हैं. आल इंडिया जजेस एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, [WP-CIVIL 643 of 2015] के मामले में १५ मई २०१३ को तीन न्यायाधीशों की पूर्ण पीठ ने आदेश रिज़र्व कर लिया है.

यह तर्क कई बार किया जाता है कि उच्च और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को क्यों विशेष समझा जाता है और आम सरकारी कर्मचारी की तरह क्यों नहीं माना जाता. इसके दो कारण है- (१) उनकी संख्या बहुत कम है, ११३८ न्यायाधीशों पर पेंशन का भार कम होगा. (२) उच्च न्यायालय और विशेषकर उच्चतम न्यायालय में योग्य वकीलों की नियुक्ति के लिए सहयोगी होता है. अनेक वकील जिनकी प्रैक्टिस अच्छी चलती है वे उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में आना नहीं चाहते. उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की जो सालाना सेलरी है वह कुछ वकीलों के एक महीने की आय के बराबर है. बेहतरीन योग्य व्यक्ति को उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में लाने के लिए यह प्रावधान सहायक है. [ मित्र आशुतोष कुमार जी के अनुरोध पर न्यायपालिका में पेंशन का यह भाग जोड़ा है]

 जिन राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम का वादा किया था वे अच्छी स्थिति में नहीं हैं. वे जरुरतमंदों के लिए नई योजनायें नहीं चला पा रहे हैं. अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में इन राज्यों की माली हालत बहुत ख़राब  होने वाली है. यह भी ध्यान रखने की बात है कि यदि आप २५००० रूपये महीने कमाते हैं तो आप देश की आबादी के १०% में आते हैं. दूसरे शब्दों में हमारे देश में ९०% लोग वह सेलरी नहीं पाते जो सरकारी कर्मचारी पाते हैं. अधिकांश जनता के लिए पेंशन की बात तो दूर है.  https://www.india.com/business/state-of-inequality-report-if-you-earn-rs-25000-per-month-you-are-among-indias-top-10-per-cent-5402776/ 


V. निष्कर्ष


कृपया यह नहीं समझें कि मैं पेंशन का विरोधी हूँ. मुझे भी इस सामाजिक सुरक्षा का भान है . लेकिन एक देश के चैतन्य नागरिक होने के नाते हम केवल अपने और अपने परिवार के बारे में ही नहीं सोच सकते.  समाज और देश हम सबसे बड़ा है. राजनीतिक दल के नेता अधिकांश मामलों में केवल अगले चुनाव की सोचता है, और एक बुद्धिजीवी अगली पीढ़ी की सोचता है. देश में अभी सबको बुनियादी स्वास्थ्य की सुविधा नहीं दे पा रहे हैं. देश का बड़ा वर्ग निजी क्षेत्र में कम कर रहा है और उसकी रोज की अनेक जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं. सरकारी स्कूल की स्थिति अच्छी नहीं है (दिल्ली के अपवाद को छोड़ दें तो). सरकार को धन इन कामों के लिए चाहिए. ऊपर से चुनाव के समय में तमाम सब्सिडी देनी पड़ती है, जिनमे से कई जरूरी और कई गैर जरूरी है. ऐसे में सरकार के लिए सभी को पुरानी पेंशन देना बहुत मुश्किल है.


टिप्पणीयों और विचारों का स्वागत है. 


डॉक्टर अनुराग दीप, प्रोफ़ेसर ऑफ़ ला, इंडियन ला इंस्टिट्यूट, निकट सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली